जब से गर्मी के बाद पहली बदरी छाई है
सूखे होठों ने फिर से प्यास नयी पाई है
चांदनी झलकी यूँ चेहरे से कि महसूस हुआ
शायद सालों के बाद आज हंसी आई है
खोये थे या सोये थे इन वीरान गलियों में
कौन हैं जिसने ये सरगम यहाँ सुनाई है
हो चले थे जड़ जो रास्तो को तक तक कर
आगे बढ़ने को किसने राह ये सजाई है
कौन लाया है ये संजीवनी चुन कर कहदो
फिर से जीने की चाह किसने अब जगाई है
रात थी स्याही थी और टिमटिमाते तारे थे
मानो बरसो के बाद दिन की झलक पायी है
खिल उठे हैं हजारों सूर्यमुखी सुबह को
सच है सालों के बाद हमको हंसी आई है
Wednesday, October 22, 2008
Thursday, September 18, 2008
बुझती लौ
लिखाई टूट रही स्याही खत्म होने को है
बुझने वाले हैं दीप रौशनी अब खोने को है
वैसे कहने को तो ये सफर पुराना है
फ़िर भी लगता है जैसे हर कदम बेगाना है
डगमगाती हुई कश्ती, लहरती लौ की तरह
बरसती हर एक बूँद हमको डुबोने को है
डाली से टूटे क्या हम यूँ लिया हवाओं ने
तप के बरसी यूँ धूप ज्यों जले चिताओं में
कैसा खाना कहाँ पानी कि अब तो सूख चले
बची जो राख वो भी अब हवा में उड़ने को है
दिल को पानी से लिखा तो कहाँ रह पायेगा
की बन के भाप पल में आँखों से छुप जाएगा
कहाँ मिलेंगे रंग जिनसे तुमको दिल ये कहूँ
लिखाई टूट रही स्याही खत्म होने को है
बुझने वाले हैं दीप रौशनी अब खोने को है
वैसे कहने को तो ये सफर पुराना है
फ़िर भी लगता है जैसे हर कदम बेगाना है
डगमगाती हुई कश्ती, लहरती लौ की तरह
बरसती हर एक बूँद हमको डुबोने को है
डाली से टूटे क्या हम यूँ लिया हवाओं ने
तप के बरसी यूँ धूप ज्यों जले चिताओं में
कैसा खाना कहाँ पानी कि अब तो सूख चले
बची जो राख वो भी अब हवा में उड़ने को है
दिल को पानी से लिखा तो कहाँ रह पायेगा
की बन के भाप पल में आँखों से छुप जाएगा
कहाँ मिलेंगे रंग जिनसे तुमको दिल ये कहूँ
लिखाई टूट रही स्याही खत्म होने को है
Wednesday, September 17, 2008
Monday, August 4, 2008
Its My Wish
ख्वाहिशें हैं कुछ ऐसी भी ,अभी तक जिंदा जो दिल में,
चाहकर भी मिटा सकना,नहीं है दिल कि सरहद में,
और फिर सोचता हूँ क्यों मिटाऊँ वो सारी अनकही हसरत,
है गर अब तक के बाकी जान मेरी इस हवेली में
के जीना है नहीं बस गिनती की साँसे बिता लेना,
के जिंदा वो जो सारी ख्वाहिशों को जी के दिखलाये
मगर सच भी है ख्वाहिश नाम है उस गहरे दरिया का
चांदनी शब के आँचल में सजा जहाँ दूधिया साहिल,
जिसे छूने की हसरत में खिंचे जाते हैं दीवाने,
और फिर लौट न पाए थे जो तैराक दुनिया के,
नहीं ग़म है कोई फिर भी के मैं ऊंची मौज का मांझी,
साधना जानता हूँ नाव देखे रुख हवाओं का,
और फिर हैं कई मुझ से जिन्होंने अदना ख्वाहिश पर,
हैं ढूंढे अनगिनत मोती, इक नयी धरती भी ढूंढी है
चाहकर भी मिटा सकना,नहीं है दिल कि सरहद में,
और फिर सोचता हूँ क्यों मिटाऊँ वो सारी अनकही हसरत,
है गर अब तक के बाकी जान मेरी इस हवेली में
के जीना है नहीं बस गिनती की साँसे बिता लेना,
के जिंदा वो जो सारी ख्वाहिशों को जी के दिखलाये
मगर सच भी है ख्वाहिश नाम है उस गहरे दरिया का
चांदनी शब के आँचल में सजा जहाँ दूधिया साहिल,
जिसे छूने की हसरत में खिंचे जाते हैं दीवाने,
और फिर लौट न पाए थे जो तैराक दुनिया के,
नहीं ग़म है कोई फिर भी के मैं ऊंची मौज का मांझी,
साधना जानता हूँ नाव देखे रुख हवाओं का,
और फिर हैं कई मुझ से जिन्होंने अदना ख्वाहिश पर,
हैं ढूंढे अनगिनत मोती, इक नयी धरती भी ढूंढी है
Monday, July 28, 2008
The Sinking Boat
मेरे सपनो की दुनिया से मुझे अब दूर जाना है
अंधेरे काटने को राह के ख़ुद को जलाना है
अगर जिंदा रहूँ फ़िर भी तो बेजां देह है मेरी
के पल पल घोट कर अरमां महज बस जीते जाना है
वो कहते जिंदगी दी रब ने जो है एक हसीं नगमा
जियें कैसे जो बनकर लाश जब जीवन बिताना है
सज़ा मिलती गुनाहों की गुनाह जब साबित हो जायें
कहो कैसे सज़ा के बाद फ़िर पेशी को जाना है
सज़ा मंजूर सर आँखों पे सर हम ने झुकाया है
मगर इतना भी जानो हमने वालिद तुम को माना है
राहें थीं ग़लत जिस पर चला ये है कुबूल हमको
मगर मौका तो दो के हमको वापस लौट जाना है
नही दिखती कोई लौ जिसका रुख कर मोड़ दें कश्ती
क्यों यूँ तिल तिल डुबाते हो जो एक दिन डूब जाना है
Tuesday, July 22, 2008
good old days
बीता हुआ वक़्त फिर याद दिलाया न करो
सो रहे हैं अगर तो नींद से उठाया न करो
कहीं खो बैठे हैं भीड़ में जो पहचान अपनी
तुम उसे ढूँढ के फिर सामने लाया न करो
छेड़ देते हो क्यों टूटे हुए इन तारों को
खनकते नहीं अब ये इनको दुखाया न करो
साँस चलती थी धड़कन सुनाई देती थी
जल चुकी लाश इसे फ़िर से जिलाया न करो
देखते हैं तुम्हे और फिर से तलब उठती है
फिर यूँ जीने की तड़प दिल में जगाया न करो
अब न सींचो रगें सूखे हुए इन पौधों की
या तो फिर तपते मरू में छोड़ के जाया न करो
भरी रहती हैं ये पलके हमेशा नीरों से
मर्म छूकर इन्हें तुम पुनः छलकाया न करो
सो रहे हैं अगर तो नींद से उठाया न करो
कहीं खो बैठे हैं भीड़ में जो पहचान अपनी
तुम उसे ढूँढ के फिर सामने लाया न करो
छेड़ देते हो क्यों टूटे हुए इन तारों को
खनकते नहीं अब ये इनको दुखाया न करो
साँस चलती थी धड़कन सुनाई देती थी
जल चुकी लाश इसे फ़िर से जिलाया न करो
देखते हैं तुम्हे और फिर से तलब उठती है
फिर यूँ जीने की तड़प दिल में जगाया न करो
अब न सींचो रगें सूखे हुए इन पौधों की
या तो फिर तपते मरू में छोड़ के जाया न करो
भरी रहती हैं ये पलके हमेशा नीरों से
मर्म छूकर इन्हें तुम पुनः छलकाया न करो
Friday, June 20, 2008
Its your Life, live it today
life is to move on ,
on and on,
what if i expect something,
what if dont get the expected,
what if i dont keep up to the pace,
what if i am tired,
what if i stop,
where should i stop,
what if the life leaves me behind,
what if my people move away,
shall i put an end to this - what if,
.
.
.
.
.
.
.
.
is it my day today?
.
.
.
.
.
.
lets make it my day,
.
.
let future be future.
on and on,
what if i expect something,
what if dont get the expected,
what if i dont keep up to the pace,
what if i am tired,
what if i stop,
where should i stop,
what if the life leaves me behind,
what if my people move away,
shall i put an end to this - what if,
.
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is it my day today?
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lets make it my day,
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let future be future.
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