ख्वाहिशें हैं कुछ ऐसी भी ,अभी तक जिंदा जो दिल में,
चाहकर भी मिटा सकना,नहीं है दिल कि सरहद में,
और फिर सोचता हूँ क्यों मिटाऊँ वो सारी अनकही हसरत,
है गर अब तक के बाकी जान मेरी इस हवेली में
के जीना है नहीं बस गिनती की साँसे बिता लेना,
के जिंदा वो जो सारी ख्वाहिशों को जी के दिखलाये
मगर सच भी है ख्वाहिश नाम है उस गहरे दरिया का
चांदनी शब के आँचल में सजा जहाँ दूधिया साहिल,
जिसे छूने की हसरत में खिंचे जाते हैं दीवाने,
और फिर लौट न पाए थे जो तैराक दुनिया के,
नहीं ग़म है कोई फिर भी के मैं ऊंची मौज का मांझी,
साधना जानता हूँ नाव देखे रुख हवाओं का,
और फिर हैं कई मुझ से जिन्होंने अदना ख्वाहिश पर,
हैं ढूंढे अनगिनत मोती, इक नयी धरती भी ढूंढी है
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