बीता हुआ वक़्त फिर याद दिलाया न करो
सो रहे हैं अगर तो नींद से उठाया न करो
कहीं खो बैठे हैं भीड़ में जो पहचान अपनी
तुम उसे ढूँढ के फिर सामने लाया न करो
छेड़ देते हो क्यों टूटे हुए इन तारों को
खनकते नहीं अब ये इनको दुखाया न करो
साँस चलती थी धड़कन सुनाई देती थी
जल चुकी लाश इसे फ़िर से जिलाया न करो
देखते हैं तुम्हे और फिर से तलब उठती है
फिर यूँ जीने की तड़प दिल में जगाया न करो
अब न सींचो रगें सूखे हुए इन पौधों की
या तो फिर तपते मरू में छोड़ के जाया न करो
भरी रहती हैं ये पलके हमेशा नीरों से
मर्म छूकर इन्हें तुम पुनः छलकाया न करो
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