मेरे सपनो की दुनिया से मुझे अब दूर जाना है
अंधेरे काटने को राह के ख़ुद को जलाना है
अगर जिंदा रहूँ फ़िर भी तो बेजां देह है मेरी
के पल पल घोट कर अरमां महज बस जीते जाना है
वो कहते जिंदगी दी रब ने जो है एक हसीं नगमा
जियें कैसे जो बनकर लाश जब जीवन बिताना है
सज़ा मिलती गुनाहों की गुनाह जब साबित हो जायें
कहो कैसे सज़ा के बाद फ़िर पेशी को जाना है
सज़ा मंजूर सर आँखों पे सर हम ने झुकाया है
मगर इतना भी जानो हमने वालिद तुम को माना है
राहें थीं ग़लत जिस पर चला ये है कुबूल हमको
मगर मौका तो दो के हमको वापस लौट जाना है
नही दिखती कोई लौ जिसका रुख कर मोड़ दें कश्ती
क्यों यूँ तिल तिल डुबाते हो जो एक दिन डूब जाना है
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