Monday, July 28, 2008

The Sinking Boat

मेरे सपनो की दुनिया से मुझे अब दूर जाना है

अंधेरे काटने को राह के ख़ुद को जलाना है

अगर जिंदा रहूँ फ़िर भी तो बेजां देह है मेरी

के पल पल घोट कर अरमां महज बस जीते जाना है

वो कहते जिंदगी दी रब ने जो है एक हसीं नगमा

जियें कैसे जो बनकर लाश जब जीवन बिताना है

सज़ा मिलती गुनाहों की गुनाह जब साबित हो जायें

कहो कैसे सज़ा के बाद फ़िर पेशी को जाना है

सज़ा मंजूर सर आँखों पे सर हम ने झुकाया है

मगर इतना भी जानो हमने वालिद तुम को माना है

राहें थीं ग़लत जिस पर चला ये है कुबूल हमको

मगर मौका तो दो के हमको वापस लौट जाना है

नही दिखती कोई लौ जिसका रुख कर मोड़ दें कश्ती

क्यों यूँ तिल तिल डुबाते हो जो एक दिन डूब जाना है

Tuesday, July 22, 2008

good old days

बीता हुआ वक़्त फिर याद दिलाया न करो
सो रहे हैं अगर तो नींद से उठाया न करो
कहीं खो बैठे हैं भीड़ में जो पहचान अपनी
तुम उसे ढूँढ के फिर सामने लाया न करो
छेड़ देते हो क्यों टूटे हुए इन तारों को
खनकते नहीं अब ये इनको दुखाया न करो
साँस चलती थी धड़कन सुनाई देती थी
जल चुकी लाश इसे फ़िर से जिलाया न करो
देखते हैं तुम्हे और फिर से तलब उठती है
फिर यूँ जीने की तड़प दिल में जगाया न करो
अब न सींचो रगें सूखे हुए इन पौधों की
या तो फिर तपते मरू में छोड़ के जाया न करो
भरी रहती हैं ये पलके हमेशा नीरों से
मर्म छूकर इन्हें तुम पुनः छलकाया न करो