जब से गर्मी के बाद पहली बदरी छाई है
सूखे होठों ने फिर से प्यास नयी पाई है
चांदनी झलकी यूँ चेहरे से कि महसूस हुआ
शायद सालों के बाद आज हंसी आई है
खोये थे या सोये थे इन वीरान गलियों में
कौन हैं जिसने ये सरगम यहाँ सुनाई है
हो चले थे जड़ जो रास्तो को तक तक कर
आगे बढ़ने को किसने राह ये सजाई है
कौन लाया है ये संजीवनी चुन कर कहदो
फिर से जीने की चाह किसने अब जगाई है
रात थी स्याही थी और टिमटिमाते तारे थे
मानो बरसो के बाद दिन की झलक पायी है
खिल उठे हैं हजारों सूर्यमुखी सुबह को
सच है सालों के बाद हमको हंसी आई है
Wednesday, October 22, 2008
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